कर्मचारी और अधिकारी जिनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, उनका स्थानांतरण ना किया जाए: हाईकोर्ट
रायपुर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शासकीय कर्मचारी और अधिकारियों के हित में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने स्टाफ नर्स सरस्वती साहू की याचिका पर…
रायपुर
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शासकीय कर्मचारी और अधिकारियों के हित में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने स्टाफ नर्स सरस्वती साहू की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्थानांतरण आदेश पर रोक लगा दी है. जस्टिस पीपी साहू ने फैसले में कहा कि यदि बहुत जरुरी ना हो तो शैक्षणिक सत्र के बीच में ऐसे कर्मचारी और अधिकारी जिनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, उनका स्थानांतरण ना किया जाए. इस फैसले से उन सरकारी कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है, जिनके बच्चे शैक्षणिक सत्र के दौरान पढ़ाई कर रहे हैं.
सरस्वती साहू, जो बालोद जिले के पीपरछेड़ी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्टाफ नर्स के रूप में कार्यरत हैं. जिनका डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल, रायपुर में स्थानांतरित कर दिया है. जिसको लेकर नर्स ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई. याचिकाकर्ता के वकील संदीप दुबे ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता स्टाफ नर्स के दो पदों में से वर्तमान पदस्थापना स्थान पर कार्यरत एकमात्र स्टाफ नर्स है. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, बालोद ने 7.10.2024 को संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं संचालनालय को पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता के स्थानांतरण के बाद उसके स्थान पर किसी अन्य स्टाफ को नहीं रखा गया है. इससे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का उचित और सुचारू संचालन प्रभावित हो रहा है.
बच्चों की पढ़ाई पर पड़ेगा असर
याचिकाकर्ता के दो बच्चे स्वामी आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी माध्यम स्कूल, बालोद, जिला-बालोद में कक्षा-10 वीं और 6 वीं में पढ़ रहे हैं. याचिकाकर्ता का स्थानांतरण शैक्षणिक सत्र के मध्य में हुआ है, इसलिए उन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का एक बच्चा कक्षा-10वीं में पढ़ रहा है, जो कि बोर्ड परीक्षा है. अधिवक्ता संदीप दुबे ने स्कूल शिक्षा निदेशक बनाम ओ. करुप्पा थेवन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसकी रिपोर्ट 1994 एससीसी सप्लीमेंट (2) 666 में दी गई है.
राज्य शासन के अधिवक्ता ने दिया ये तर्क
राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी ने कहा कि याचिकाकर्ता मेडिकल कॉलेज का कर्मचारी है. उसे शिक्षा विभाग में पदस्थ किया गया था. याचिकाकर्ता के अनुरोध पर उन्हें स्वास्थ्य सेवा विभाग में पदस्थ किया गया था. अब उन्हें उनके मूल विभाग में वापस भेज दिया गया है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुबे ने कोर्ट से मांग की कि याचिकाकर्ता ने 4.10.2024 को भी अभ्यावेदन प्रस्तुत किया है. लिहाजा अभ्यावेदन पर निर्णय होने तक याचिकाकर्ता का स्थानांतरण ना किया जाए.
कोर्ट ने अपने फैसले में ये कहा
मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि स्थानांतरण करते समय, इस तथ्य को उचित महत्व दिया जाना चाहिए कि कर्मचारी के बच्चे पढ़ रहे हैं, यदि सेवा की अनिवार्यताएं तत्काल नहीं हैं. इस टिप्पणी के साथ स्थानांतरण आदेश पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सचिव स्वास्थ्य सेवाएं के समक्ष 10 दिनों की अवधि के भीतर नया अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. यदि याचिकाकर्ता अभ्यावेदन प्रस्तुत करता है, तब सचिव स्वास्थ्य सेवाएं को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को ध्यान में रखते हुए, कानून के अनुसार चार सप्ताह के भीतर निर्णय लेना होगा. अभ्यावेदन के निराकरण तक स्थानांतरण आदेश पर कोर्ट ने रोक लगा दी है.