महाविकास अघाड़ी में आना उद्धव ठाकरे के लिए घाटे का सौदा, सीटें हुई कम और सीएम पद को लेकर संशय
मुंबई । महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे का सफर अब एक चुनौतीपूर्ण मोड़ पर आ गया है। ठाकरे परिवार की शक्ति का अवमूल्यन हो चुका है, वहीं बीजेपी को…
मुंबई । महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे का सफर अब एक चुनौतीपूर्ण मोड़ पर आ गया है। ठाकरे परिवार की शक्ति का अवमूल्यन हो चुका है, वहीं बीजेपी को महाराष्ट्र के राजनीतिक मैदान में अपनी पकड़ बनने के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है। हिन्दु सम्राट स्व. बालासाहेब ठाकरे द्वारा अर्जित ताकत को उद्धव ने महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में शामिल होकर एक झटके में खो दिया है। अब मातोश्री का महाराष्ट्र की राजनीति में वहां महत्त्व भी नहीं रहा, जो बीजेपी के साथ गठबंधन के दौरान हुआ करता था।
उद्धव जिनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी लड़ाई का मुख्य उद्देश्य थी, ने आधे कार्यकाल तक ही उस पर टिके रहकर सरकार गंवा दी। इससे न केवल उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई, बल्कि पार्टी संगठन भी उनके हाथ से चला गया। अगर लोकसभा चुनाव 2024 में थोड़ी बहुत इज्जत बची है, तब वह केवल महाराष्ट्र के लोगों का दिया हुआ उपहार है। कांग्रेस को अधिक सीटें देकर उद्धव ने अपनी स्थिति को और कमजोर कर दिया है।
भाजपा से घटती शक्ति: उद्धव जब बीजेपी के साथ थे, तब उनकी पार्टी की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत थी, लेकिन अब एमवीए में आकर उद्धव गुट की शक्ति घटकर एक-तिहाई रह गई है। वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 165 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार उन्हें केवल 85 सीटों से संतोष करना पड़ रहा है। एमवीए में सीट शेयरिंग के हिसाब से शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस, और एनसीपी (शरद पवार) को समान 85 सीटें मिल रही हैं। 2019 में बीजेपी-शिवसेना ने 105 और 56 सीटें जीती थीं। इस बार, क्या उद्धव पिछली बार जितनी सीटें जीत पाएंगे? यह एक बड़ा सवाल है।
मुख्यमंत्री की दावेदारी को लेकर संशय
उद्धव ने महाविकास अघाड़ी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन न शरद पवार और न ही राहुल गांधी ने ऐसा कोई वादा उनसे किया। जो पार्टी अधिक सीटें जीतेगी, उसकी दावेदारी मजबूत होगी। उद्धव ठाकरे ने कई बार अपनी दावेदारी प्रस्तुत की, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकाला। इसके बाद उद्धव ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए सार्वजनिक बयानों का सहारा लिया, लेकिन यह रणनीति सफल नहीं हुई। इतना ही नहीं शरद पवार और राहुल गांधी ने उनके बयानों को निजी राय देकर पल्ला झाड़ लिया।
दायरे में सिकुड़न: शिवसेना का प्रभाव क्षेत्र अब सिर्फ मुंबई-कोंकण तक सीमित होता जा रहा है। पुणे जैसे क्षेत्रों में एकनाथ शिंदे का प्रभुत्व मजबूत हो रहा है।
इतना ही नहीं महाविकास अघाड़ी में शामिल होने के कारण उद्धव को हिंदुत्व की राजनीति का विरोध करना पड़ रहा है। कांग्रेस और शरद पवार के साथ खड़े होने के कारण उन्हें उस राजनीतिक लाइन का पालन करना पड़ रहा है, जो उनके और पिता बाला साहेब के पुराने सिद्धांतों के खिलाफ है। यह स्थिति उनके लिए चुनौती बन गई है, क्योंकि वे अपने हिंदुत्व के एजेंडे को प्रभावी तरीके से लोगों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
उद्धव ठाकरे के लिए वर्तमान परिस्थितियां काफी चुनौतीपूर्ण हैं। उनके पास केवल ढाई साल का मुख्यमंत्री बनने का अनुभव है, लेकिन इसके अलावा किसी उपलब्धि का कोई जिक्र नहीं है। महाविकास अघाड़ी में आने से उन्होंने अपनी राजनीतिक स्थिति को न केवल कमजोर किया है, बल्कि उनकी पार्टी का भविष्य भी संदेह में है। बीजेपी के साथ गठबंधन के दिनों की तुलना में अब उनकी स्थिति बहुत अधिक कमजोर हो चुकी है।