नाराज हाईकोर्ट बोला- मुंबई लोकल में मवेशियों की तरह यात्री.. शर्मनाक; पुणे में जीका वायरस के दो मामले
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मुंबई की लोकल ट्रेनों में यात्रियों को मवेशियों की तरह यात्रा करते देखना शर्मनाक है। भीड़भाड़ वाली ट्रेनों से गिरने या पटरियों पर अन्य दुर्घटनाओं…
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मुंबई की लोकल ट्रेनों में यात्रियों को मवेशियों की तरह यात्रा करते देखना शर्मनाक है। भीड़भाड़ वाली ट्रेनों से गिरने या पटरियों पर अन्य दुर्घटनाओं के कारण यात्रियों की बढ़ती मौतों पर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस बहुत गंभीर मुद्दे से निपटा जाना चाहिए। चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि वह मध्य और पश्चिमी रेलवे दोनों के शीर्ष अधिकारियों को जवाबदेह ठहराएगी क्योंकि मुंबई में स्थिति दयनीय है। यह जनहित याचिका यतिन जाधव ने दाखिल की है। पीठ ने कहा, याचिका में बहुत ही गंभीर मुद्दा उठाया गया है और इसलिए आपको इस पर ध्यान देना होगा। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय ने सुनवाई के दौरान कहा, 'इस शब्द का इस्तेमाल करने के लिए मुझे खेद है। मुझे इस बात पर शर्म आती है कि यात्रियों को किस तरह स्थानीय स्तर पर ऐसी यात्रा करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिसमें उनकी जान तक चली जाती है।' उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि आशा है कि प्रति हजार यात्रियों पर मृत्यु दर लंदन से कम हो जाएगी। मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ विरार के रहने वाले यतिन जाधव द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दरअसल, यतिन रोजाना पश्चिम रेलवे लाइन पर यात्रा करते हैं। उन्होंने अपनी याचिका में यात्रा के दौरान हुई मौतों के मुद्दे को उठाया है। उन्होंने बताया कि हर साल करीब 2,590 लोग अपनी जान गंवाते हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि कॉलेज या काम पर जाने वाले यात्रियों के बीच प्रति दिन लगभग पांच मौतें होती हैं। जाधव की ओर से पेश वकील रोहन शाह ने कहा कि इन मौतों का मुख्य कारण यात्रियों का ट्रेन से गिरना और रेल पटरियां पार करते समय दुर्घटनाएं हैं। उन्होंने कहा कि मुंबई लोकल टोक्यो के बाद दूसरी सबसे व्यस्त रेलवे प्रणाली है और इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रति हजार यात्रियों पर मृत्यु दर 33.8 है, जबकि न्यूयॉर्क में 2.66 और लंदन में 1.43 है।
काम पर जाना जंग पर जाने जैसा
शाह ने कहा कि कॉलेज आना या काम पर जाना जंग पर जाने जैसा है, क्योंकि इसमें मरने वालों की संख्या ड्यूटी पर मरने वाले सैनिकों की संख्या से अधिक है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि रेलवे ने बंद दरवाजों वाली एसी ट्रेनें शुरू की हैं, लेकिन कम आय वर्ग के लोग अभी भी एसी ट्रेनों के महंगे टिकटों के कारण नॉन-एसी ट्रेनों में यात्रा करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पहले 10 नॉन-एसी ट्रेनों द्वारा साझा की जाने वाली क्षमता को अब 8 नॉन-एसी ट्रेनों द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है, क्योंकि 10 में से 2 को एसी ट्रेनों में बदल दिया गया है। वकील शाह ने आगे बताया कि रेलवे द्वारा ट्रेन दुर्घटना या रेलवे संपत्ति पर आग लगने की घटनाओं को छोड़कर कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इन दो श्रेणियों के बाहर की मौतों को रेलवे द्वारा दर्ज नहीं किया जाता है और उन्हें केवल 'अप्रिय घटना' के रूप में चिह्नित किया जाता है। दूसरी ओर, पश्चिम रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने कहा कि 2019 में उच्च न्यायालय ने बुनियादी ढांचे के संबंध में कुछ निर्देश जारी किए थे, जिनका पालन किया गया था। उन्होंने कहा कि सभी ट्रेनों और पटरियों का अधिकतम क्षमता से उपयोग किया जा रहा है।