प्रशासनिक ढिलाई की वजह से ई-ऑफिस में पिछड़ा मप्र

भोपाल। प्रदेश सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था में कसावट लाने के लिए 1 जनवरी 2025 से ई-ऑफिस प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है। इसकी शुरूआत मंत्रालय से होगी। सामान्य प्रशासन विभाग…

प्रशासनिक ढिलाई की वजह से ई-ऑफिस में पिछड़ा मप्र

भोपाल। प्रदेश सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था में कसावट लाने के लिए 1 जनवरी 2025 से ई-ऑफिस प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है। इसकी शुरूआत मंत्रालय से होगी। सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभाग प्रमुखों को इसके लिए तैयार रहने के निर्देश जारी कर दिए हैं। हालांकि सरकार ने 7 साल पहले भी मंत्रालय में ई-ऑफिस प्रणाली लागू की थी, कुछ दिन ही ई-ऑफिस पर नस्तियां चलीं। तब से लेकर पुराने ढर्रे पर ही काम हो रहा है। उसी समय उप्र, तेलंगाना, केरल, दिल्ली समेत अन्य राज्यों ने भी ई-ऑफिस प्रणाली को लागू किया थी। इन राज्यों में पूरा सरकारी कामकाज इलेक्ट्रॉनिक मोड में आ गया। जबकि मप्र प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव में ई-ऑफिस प्रणाली में कई साल पिछड़ गया है।
दिसंबर 2017 में ई-ऑफिस प्रणाली लागू करने से पहले सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्रालय के सभी अधिकारी, कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिलाया था। साथ ही करीब 60 करोड़ की लागत से स्कैनर, कंप्यूटर समेत अन्य सामग्री खरीदी थी। ई-ऑफिस पर काम नहीं होने स्कैनर कबाड़ हो गए। अब फिर से उपकरणों की खरीदी होगी। मंत्रालय में तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने ई-ऑफिस प्रणाली लागू करने से ज्यादा खरीदी पर जोर दिया। सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव विनोद के समय आत्मनिर्भर मप्र के तहत सीआरयू (डाक पंजीयन व्यवस्था) की स्थापना के लिए करोड़ों की खरीद हुई। सीआरयू व्यवस्था ठप है। प्रदेश भर से मंत्रालय में आने वाली डाक पंजीयन की कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। जिसकी वजह अभी तक वरिष्ठ अधिकारियों का ई-ऑफिस प्रणाली को प्रभावी ढंग से लागू करने पर जोर नहीं देना है। अब नए मुख्य सचिव अनुराग जैन ने एक महीने के भीतर ही ई-ऑफिस प्रणाली को सख्ती से लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। सामान्य प्रशासन विभाग ने मप्र स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम (एमपीएसईडीसी) के तत्कालीन प्रबंध संचालक अभिजीत अग्रवाल द्वारा पिछले साल ई-ऑफिस प्रणाली को लेकर की गई सिफारिश को भी अमल में लाने के निर्देश दिए हैं।

इसलिए इलेक्ट्रॉनिक मोड में नहीं चल पाई सरकार
7 साल पहले मंत्रालय ई-ऑफिस लागू होने से एक दिन पहले जीएडी के तत्कालीन अपर मुख्य प्रभांशु कमल ने निर्देश दिए कि आगे से उनके पास ऑफलाइन फाइल नहीं भेजी जाए। ज्यादातर विभाग ई-ऑफिस पर नस्तियां दौड़ाने के प्रयास कर रहे थे। तभी तत्कालीन मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह ने ई-ऑफिस के साथ-साथ मौजूदा (ऑफलाइन) व्यवस्था चालू रखने पर सहमति दे दी। उस समय मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी ई-ऑफिस के जरिए नस्तियां बुलाने के पक्ष में नहीं थे। दोनों बड़े कार्यालयों की ढिलाई की वजह से मंत्रालय में ई-ऑफिस व्यवस्था ठप हो गर्ई। मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री कार्यालय की ढिलाई की वजह से मप्र सरकार ई-ऑफिस के मामले में अन्य राज्यों से कई साल पिछड़ गई है।

कई विभागाध्यक्ष कार्यालयों में ऑनलाइन दौड़ रहीं नस्तियां
मंत्रालय में ई-ऑफिस व्यवस्था बेशक ठप हो, लेकिन कई विभागाध्यक्ष कार्यालयों में नस्तियां ऑनलाइन दौड़ रहीं है। जानकारी के अनुसार लगभग सभी प्रमुख विभागाध्यक्ष कार्यालयों में इलेक्ट्रॉनिक मोड में काम हो रहा है। जैसे ही मंत्रालय में यह व्यवस्था लागू होगी। तब विभागाध्यक्ष कार्यालयों से नस्तियां एक क्लिक पर मंत्रालय पहुंच जाएंगी। ई-ऑफिस प्रणाली इतनी बेहतर है कि फाइल दबाने, दस्तावेज गायब होने, लेटलतीफी की व्यवस्था लगभग खत्म हो जाएगी।