महिला-पुरुष दोनों कर सकते हैं यौन उत्पीडऩ:दिल्ली हाईकोर्ट
नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार को पोक्सो एक्ट के एक मामले में सुनवाई की। जस्टिस जयराम भंभानी ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले और…
नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार को पोक्सो एक्ट के एक मामले में सुनवाई की। जस्टिस जयराम भंभानी ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले और गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला (जबरन किसी चीज से बच्चों के निजी अंगों से छेड़छाड़) केस महिलाओं के खिलाफ भी चलाया जा सकता है। ऐसे मामलों में जेंडर कोई ढाल नहीं हैं। कोर्ट की टिप्पणी एक महिला की दाखिल याचिका पर आई है। उसका तर्क है कि पोक्सो एक्ट की धारा 3 में पेनिट्रेटिव यौन हमला और धारा 5 में गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमला का केस किसी महिला पर दर्ज नहीं हो सकता। क्योंकि इनकी डेफिनेशन से पता चलता है कि इसमें केवल सर्वनाम वह का उपयोग किया गया है। जो कि पुरुष को दर्शाता है, महिला को नहीं। महिला पर साल 2018 में केस दर्ज हुआ था। मार्च 2024 में ट्रायल कोर्ट ने उसके खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत आरोप तय किए थे। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पोक्सो के प्रावधानों से पता चलता है कि पोक्सो अधिनियम की धारा 3 में प्रयुक्त शब्द वह को ये अर्थ नहीं दिया जा सकता कि यह केवल पुरुष के लिए है। इसके दायरे में लिंग भेद के बिना कोई भी अपराधी (महिला और पुरुष दोनों) शामिल होना चाहिए। यह सही है कि सर्वनाम वह को पोक्सो अधिनियम में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है।
पोक्सो एक्ट बच्चों के लिए
हाईकार्ट ने कहा कि पोक्सो अधिनियम की धारा 2(2) के प्रावधान को देखते हुए, किसी को वह सर्वनाम की परिभाषा पर वापस लौटना चाहिए, जैसा कि आईपीसी की धारा 8 में है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पोक्सो एक्ट बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया है। चाहे वो अपराध किसी पुरुष या महिला ने किया हो। अदालत को कानून के किसी भी प्रावधान की ऐसी व्याख्या नहीं करनी चाहिए जो विधायी इरादे और उद्देश्य से अलग हो। पोक्सो एक्ट में किसी भी वस्तु का प्रवेश बच्चों के निजी अंगों में बात है, न कि केवल शरीर का कोई अंग। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि यौन अपराध केवल लिंग के प्रवेश तक ही सीमित है। पोक्सो एक्ट की धारा 3(ए), 3(बी), 3(सी) और 3(डी) में उपयोग सर्वनाम वह की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जानी चाहिए कि उन धाराओं में शामिल अपराध को केवल पुरुष तक सीमित कर दिया जाए। आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार), दूसरी ओर पोक्सो एक्ट की धारा 3 और 5 में बताए गए क्राइम की तुलना करने से सामने आता है कि दोनों अपराध अलग-अलग हैं।