9 सितंबर को प्रदेश में बलराम जयंती, किसान दिवस के रुप में मनायी जाएगी

रायपुर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, कृषि विकास एवं किसान कल्याण तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग, छत्तीसगढ़ शासन तथा भारतीय किसान संघ छत्तीसगढ़ प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में कृषि के देवता…

9 सितंबर को प्रदेश में बलराम जयंती, किसान दिवस के रुप में मनायी जाएगी

रायपुर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, कृषि विकास एवं किसान कल्याण तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग, छत्तीसगढ़ शासन तथा भारतीय किसान संघ छत्तीसगढ़ प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में कृषि के देवता माने जाने वाले भगवान बलराम जी की जयंती 9 सितम्बर को भगवान बलराम जयंती-किसान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय, रायपुर के कृषि मण्डपम में दोपहर 12 बजे आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि विकास एवं किसान कल्याण तथा जैव प्रौद्योगिकी मंत्री रामविचार नेताम करेंगे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी हांगे। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में बृजमोहन अग्रवाल, सांसद, रायपुर, अनुज शर्मा, विधायक, धरसींवा, मोतीलाल साहू, विधायक, रायपुर ग्रामीण, डॉ. गिरीश चंदेल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय एवं सुरेश चन्द्रवंशी, अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, छत्तीसगढ़ प्रान्त उपस्थित रहेंगे।

भगवान बलराम जयंती झ्र किसान दिवस के अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में प्राकृतिक एवं गौ आधारित कृषि विषय पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला भी आयोजित की जाएगी जिसमें प्राकृतिक एवं गौ आधारित कृषि पर विषय विशेषज्ञों द्वारा किसानों को प्राकृतिक एवं गौ आधारित कृषि की संकल्पना, इसकी प्रविधि एवं इससे प्राप्त लाभों से अवगत कराया जाएगा। इस राज्य स्तरीय कार्यशाला में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों से 2 हजार से अधिक किसान शामिल होंगे। इस दिन छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में संचालित 27 कृषि विज्ञान केन्द्रों में भी बलराम जयंती झ्र किसान दिवस समारोह का आयोजन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में आदिकाल से ही कृषि में गौ उत्पादों जैसे गोबर और गौमूत्र का प्रयोग होता रहा है। गौ आधारित खेती रसायन एवं कीटनाशक मुक्त कृषि की वह पद्धति है जिसमें परम्परागत तरीके से प्रकृति के नियमों का अनुसरण करते हुए देशी गाय आधारित खेती के सिद्धांत को अपनाकर खेती की जाती है। प्राकृतिक खेती से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और खेती की लागत कम हो जाती है।