42 सालों बाद झांकी का आयोजन, खरगोन के इस अनोखे मंदिर की दिलचस्प कहानी
मध्य प्रदेश के खरगोन शहर के जमींदार मोहल्ले में स्थित श्री चिंतामण गणेश मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यह मंदिर लगभग 42 साल पुराना है. इसकी महिमा…
मध्य प्रदेश के खरगोन शहर के जमींदार मोहल्ले में स्थित श्री चिंतामण गणेश मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यह मंदिर लगभग 42 साल पुराना है. इसकी महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है. भगवान गणेश यहां अपनी पत्नियों रिद्धि और सिद्धि के साथ विराजमान हैं, जो इस मंदिर की विशेषता है.
श्री चिंतामण गणेश मंदिर की स्थापना 1982 में की गई थी. यहां गणेशोत्सव का आयोजन 1977 से ही हो रहा था. यहां एक पुराना कुआं हुआ करता था. जिसे बंद कर ऊपर ओटला बनाया गया. उसी पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई. राजस्थान से लाई गई करीब पांच फीट ऊंची प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है.
चिंतामण नाम की मान्यता
मंदिर समिति के अध्यक्ष रवि भावसार ने local 18 से कहा कि मंदिर का नाम चिंतामण पड़ा. गणेश जी की स्थापना के बाद मोहल्ले के लोगों के सभी दुख-दर्द दूर होने लगे. गणेश जी को चिंताओं का हरण करने वाला माना जाता है. इसलिए इस मंदिर का नाम चिंतामण गणेश रखा गया.
मंदिर का निर्माण की कहानी
यह स्थान खरगोन शहर का पहला स्थल था. यहां से गणेशोत्सव की झांकी निकाली गई. 1977 में झांकी की शुरुआत हुई. 1982 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ. जिसमें लगभग 55 हजार रुपए की लागत आई. इस मंदिर को बनाने में मोहल्लेवासियों ने बड़ी भूमिका निभाई.
धार्मिक मान्यताएं और पूजा-अर्चना
मंदिर के पुजारी मंथन जोशी बताते हैं कि वे अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं. जो यहां सेवा दे रही है. गणेशोत्सव के दौरान हर दिन सुबह अभिषेक और 56 भोग लगाए जाते हैं. इसके साथ ही सुबह और शाम को महाआरती की जाती है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.
श्रद्धालुओं का विश्वास
मोहल्ले के लोग भगवान चिंतामण गणेश की महिमा पर अटूट विश्वास रखते हैं. स्थानीय निवासी कल्याण भावसार एवं हरीश भावसार कहते हैं. जब से भगवान यहां विराजमान हुए हैं. मोहल्ले के लोगों की चिंताएं दूर हो गईं और सभी के पक्के मकान बन गए. कोरोनो जैसी महामारी भी इस मोहल्ले के लोगों को छू नहीं पाई.
42 साल बाद फिर सजी झांकी
हर साल गणेशोत्सव के दौरान इस मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है. भक्त बड़ी संख्या में यहां दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता. भगवान की कृपा से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. मंदिर के पास में 42 साल बाद फिर गणेश जी की झांकी सजाई गई है.