बस्तर

सुकमा जिले में राजस्व अधिकारियों की मनमानी

त्रुटिसुधार के लंबित मामले की भूमि कर दी दूसरे के नाम, पैसों की लालच में जीवित महिला को बना दिया

जगदलपुर/जगरगुंडा अभी हाल ही में सुकमा जिले का एक ऐसा मामला सामने आया जिसमे पैसे के लिए कई मृत व्यक्तियों  को बरसों से जिंदा रखे हुए उन्हें मज़दूरी भुगतान किया जा रहा था।अब एक ऐसा मामला सामने है जिसमे पैसे की लालच में जिंदा व्यक्ति को मरा हुआ बताया जा रहा है।यह मामला है सुकमा जिले के उसी कोंटा इलाके का।
कोंटा तहसील  की उपतहसील जगरगुंडा के ग्राम राज पेंटा में हल्का नंबर 5 के एक कृषक का यह मामला है। जिसमें कृषक की पुश्तैनी भुमि जो कि त्रुटिसुधार के लिए उपतहसील कोंटा जगरगुंडा में  वर्षों से लंबित है ।इस प्रकरण पर अब तक कोई फैसला  नहीं आया है बावजूद इसके पूर्व नायब तहसीलदार राम सिंह राना
एवं तत्कालीन पटवारी मड़कम दुला  द्वारा सम्बन्धित भुमि जिसका खसरा क्रमांक 155 है का भुमि अधिकार पत्र फर्जी तरीके से कृषक के जानकारी के अभाव में दूसरे व्यक्तियों को जारी कर दिया गया है। पेशे से शिक्षक  किरण राव  एवं शंकर लाल राव नामक  दोनों व्यक्तियों के नाम पर नामांतरण कर फर्जी पट्टा भी जारी कर दिया गया है।
पूरा मामला कुछ इस प्रकार है जगरगुंडा निवासीआवेदक कृषक जय शंकर शुक्ला पिता स्व. बद्री नारायण शुक्ला  ने सन – 1969 – 70 में खसरा क्रमांक – 155 भुमि रकबा 10 एकड़ तहसीलदार कोंटा के द्वारा कि गई नीलामी में खरीदा  था ।इस भूमि को नामांतरण के समय फर्जी तरीके से खसरा नंबर
157 एवं  रकबा 5.61 एकड़ में परिवर्तित कर दिया गया । इस मामले को वर्ष – 2012 – 13 में कार्यालय कलेक्टर सुकमा को आवेदन देकर तहसील कार्यालय कोंटा में जमीन प्रकरण को सुधारने हेतु वैधानिक प्रक्रिया आरम्भ करवाई गई थी। इस बीच जो भी तहसीलदार आए उन्होंने
जय शंकर शुक्ला पिता स्व. बद्री नारायण शुक्ला  कि कोंटा तहसील कार्यालय में पेशी तामील करवाई किन्तु मामले का निराकरण लम्बित ही रहा ।इसी दरमियान अचानक कोंटा तहसील से जगरगुंडा उपतहसील कार्यालय अलग होने के कारण प्रकरण कि फाईल सुनवाई हेतु कार्यालय उपतहसील जगरगुंडा में भेज दी गई। कृषक द्वारा मीडिया को दिए गए बयान के अनुसार मामले में सुनवाई के लिए उप तहसील कार्यालय में पदस्थ नायब तहसीलदर राम सिंह राना द्वारा भुमि खसरा क्रमांक- 155 के निराकरण के लिए आश्वस्त करते हुए  कृषक से रुपए कि मांग की गई। जिस पर कृषक द्वारा रुपए देने में असमर्थता जताई  जिसके बाद 22 नवम्बर 2019 को कृषक जय शंकर शुक्ल को पेशी का नोटिस तामील कराया गया और उनकी पेशी  22 नवम्बर 2019 को जगरगुंडा उपतहसील में हुई ।
पेशी होने से पहले दिनांक – 24/07/2019 को तहसीलदार राम सिंह राना द्वारा नामांतरण कर भुमि अधिकार पत्र किरण राव व  शंकर लाल राव  के नाम पर जारी कर दिया गया जबकि कृषक जय शंकर शुक्ला ने सात वर्ष से भी अधिक वर्षों के लम्बित प्रकरण में अपने भू अधिकार से सम्बन्धित 50 वर्षों से अधिक पहले का अपना अधिकार अभिलेख नामांतरण पंजी एवं सम्बन्धित अभिलेख जो कि कार्यालय द्वारा साक्ष्य के रूप में मांगने पर जमा कर दिया गया था। जबकि किरण राव एवं शंकर लाल राव के पास अधिकार अभिलेख से सम्बन्धित कोई भी साक्ष्य ना होते हुए भी फर्जी तरीके से तहसील दार व पटवारी के साथ मिली भगत कर भुमि अधिकार  पत्र जारी करवाया गया ।
मुख्यमंत्री से करेंगे शिकायत _ शुक्ला
दोरनापाल निवासी कृषक जयशंकर शुक्ला ने बताया कि  सन 1968 में राजस्व हल्का नंबर 5 ग्राम राजपेंटा भूमि खसरा क्रमांक 155 को उस समय के तहसीलदार  ने भूमि विकास बैंक से ऋण प्राप्त करने वाले कृषक के द्वारा ऋण ना चुकाने के कारण उनकी कृषि भूमि सम्पत्ति को सार्वजनिक रूप से नीलाम करवाया गया जिसमें उस नीलामी में मैं स्वयं उपस्थित रहा और मेरे पिता स्व. बद्रीनारायण शुक्ला के नाम पर ऊँची बोली कि राशि में मेरे द्वारा भूमि शासन के माध्यम से क्रय किया गया जिसका प्रमाण स्वयं उस समय के तहसीलदार  के द्वारा मुझे दिया गया ।चूँकि उस समय जगरगुंडा से आवागमन हेतु सड़क पुल पुलिया नहीं होने के कारण वाहन इत्यादि की सुविधा नहीं होती थी और हम लोगों के द्वारा साइकिल या बैलगाड़ी ही एकमात्र साधन हुआ करता था जिससे आवागमन होता था। नामांतरण की प्रक्रिया हम जैसे लोगों के लिए जटिल हो गई क्योंकि जगरगुंडा से दोरनापाल 58 कि.मी. का सफर बैलगाड़ी से करने के बाद फिर 44 कि.मी. कोन्टा जो कि शुरू से तहसील हुआ करती थी का सफर करके पहुँच पाना और अपना कार्य समय पर करवा पाना क्योंकि नामांतरण की प्रक्रिया भी एक समयावधि और पूरे राजस्व आर्डर शीट की प्रक्रिया के अनुरूप की जाती है जिसके लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है। उन दिनों के समय बड़ा कठिन कार्य होता था जिसके कारण मेरे प्रकरण का नामांतरण भी देर से किया गया एवं सीधे तौर पर 1969-70 में बंदोबस्त के समय कैडेस्टल सर्वे अधिकारी के द्वारा 155 को 157 खसरा नंबर में परिवर्तित कर दिया गया। जानकारों के मुताबिक बंदोबस्त के समय खसरा नंबर बदल सकता है किंतु रकबा एवं भूमि में परिवर्तन संभव नहीं है। इन सब परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए अधिकारियों एवं दलालों की चाँदी है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में मेरे द्वारा कलेक्टर  के जनदर्शन में आवेदन देकर प्रकरण को शुरू करवाया गया किंतु जाँच के पश्चात भी प्रशासन के सुस्त रवैये के आगे हम बेबस और लाचार हैं और इसी बीच मुझे इस धोखाधड़ी के बारे में जानकारी मिली।इस पूरे मामले में संबंधित अधिकारी, पटवारी एवं उक्त दोनों शिक्षक शंकर राव व किरण राव की संलिप्तता नजर आ रही है क्योंकि मुझे इस बारे में अंधेरे में रखा गया और मेरी भूमि के लंबित पड़े प्रकरण को मेरे जानकारी में आए बिना इन दोनों  के नाम पर फर्जी तरीके से पैसे लेकर यह नामांतरण आदेश जारी किया गया। इस मामले में मुझे एक बात और पता चली जिसमें एक जीवित महिला जो  कि छ.ग.शासन में वर्तमान में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं जो कि इन्हीं के परिवार से सबंधित भी हैं ..को बिना किसी पड़ताल के पटवारी एवं तहसीलदार  द्वारा मृत घोषित करते हुए नामांतरण की पूरी प्रक्रिया कर दी गई। मैं मीडिया के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री  से इस पूरे मामले की जाँच करवाने हेतु आग्रह करता हूँ एवं ऐसे भ्रष्ट दोषियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करने की माँग करता हूँ। ऐसे और भी प्रकरण हैं इन क्षेत्रों में जिनकी फाइलें दबी हुई हैं और हमारे जैसे कितने ही कृषक सरकारी दफ्तर के चक्कर काटते रह जाते हैं जिनकी कोई सुनवाई नहीं होती ।

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