बस्तर

शासन प्रशासन की दर्जनों योजनाएं हार गईं जीत गई पुलिस की ये उम्मीदों भरी सड़क

अब बस्तर के अंतिम छोर तुलसी डोंगरी तक पहुंचना हुआ आसान, ओडिशा सीमा के पहुंच विहीन गांव चांदामेटा तक बनी सड़क, पुलिस की मदद से पहली बार ग्राम वासियों को नसीब हुआ नलकूप का पानी, तुलसी डोंगरी अब नही रही नक्सलियों की पनाहगाह

 

चादामेटा से लौटकर
देवशरण तिवारी

जगदलपुर हाइवे चेनल बस्तर जिले के साथ साथ प्रदेश की सरहद पर मौजूद अनछुई और रहस्यमयी तुलसी डोंगरी की पहाड़ियों तक अब पहुंचा जा सकता है।पर्यटन ,पुरातत्व,जनजातीय संस्कृति, दुर्लभ वनस्पति ,जैव विविधता और बेशकीमती खनिज से संबंधित जिज्ञासुओं के लिए यह अच्छी खबर है साथ ही सदियों से मुख्य धारा से अलग थलग पड़े इस गांव की तकदीर बदलने का समय भी अब नज़दीक आ चुका है।बुनियादी सुविधाओं के नाम पर इस गाँव के बाशिंदों के पास कुछ भी नहीं है।सिर्फ एक राशन कार्ड है जिसे लेकर पथरीला पहाड़ी सफर तय कर इन्हें कोलेंग आना पड़ता रहा है।कुछ वन अधिकार पट्टे हैं जिन्हें इन्होंने काफी सहेज कर रखा है।सड़क के बन जाने से भले ही ये मुश्किल आसान होने वाली है लेकिन अभी भी कई बुनियादी समस्याएं सामने हैं जिनके दूर होने की आस लगाए बैठे यहां के आदिवासियों की अब तक कोई सुध नही ली गई है।यहाँ के आदिवासियों ने मनरेगा का नाम आज तक नही सुना है लिहाजा उनके रोज़ी रोटी का हाल यूँ ही समझा जा सकता है।पहाड़ी पर छोटे छोटे ज़मीन के टुकड़ों पर ये लोग धान की खेती कई पीढ़ियों से करते आ रहे है।गुज़ारे के लायक कुछ अनाज मिल जाता है।पहाड़ी और पथरीला इलाका होने की वजह से नैसर्गिक रूप से मिलने वाली इमली और महुए की मदद इनके नसीब में नही है।बीपीएल वाला राशन कार्ड पास है जिससे जिंदगी चल रही है।शिक्षा ,स्वास्थ,बिजली,पानी,मोबाईल कनेक्टिविटी और रोजगार के नाम पर यहां कुछ भी नही है।कई सालों पहले यह सड़क वनविभाग द्वारा लकड़ी के गोले और बांस के परिवहन के लिए बनाई गई थी।एक समय वो भी था जब वनविभाग के कामों से इस गांव के लोगों की अच्छी खासी आमदनी हो जाया करती थी। एक प्रायमरी स्कूल था जो बीते बारह सालों से बंद पड़ा है और खंडहर में तब्दील हो चुका है।सर्दी बुखार का इलाज करवाने भी पहाड़ी से उतर कर कोलेंग गाँव तक का मीलों लंबा सफर तय करना होता है। गाँव के किसी भी व्यक्ति को आज तक वृद्धा पेन्शन,विधवा पेंशन, निराश्रित पेंशन ,सामाजिक सुरक्षा पेंशन ,सुखद सहारा पेंशन जैसी किसी भी सुविधा का लाभ नहीं मिला है।कृषि और उद्यान विभाग के साथ साथ पंचायतों की कोई भी जान कल्याणकारी योजना कई दशकों के बाद भी यहां तक नहीं पहुंच सकी है।यह गाँव बस्तर जिले के दरभा विकासखंड के छिंदगुर पंचायत का एक हिस्सा है।यह गाँव मशहूर तुलसी डोंगरी नामक पहाड़ी से सटा हुआ है और चारो ओर से घने जंगल और पहाड़ियों से घिरा हुआ है।काफी ऊंचाई पर होने की वजह से भीषण गर्मी में भी यहां गर्मी का एहसास नहीं होता।

कांगेर घाटी नेशनल पार्क से जुड़े चांदामेटा गाँव में अंडालपारा,पटेलपारा,गदमेपारा,पटनमपारा,टोंडरापारा और मुरियाम्बा जैसे मोहल्लों में कभी डेढ़ सौ से भी ज्यादा कच्चे मकान हुआ करते थे। अब 60 -65 घासफूस की बनी झोपड़ियां ही बचीं हैं।यहां के लोग इंदिरा आवास और प्रधानमंत्री आवास जैसी योजनाओं का नाम तक नहीं जानते।घनघोर अंधेरे में रहते हुए साल भर यहां बहने वाले नाले का पानी पीने वाले आदिवासियों को सदियों बाद पिछले हफ्ते हेण्ड पम्प का पानी नसीब हुआ है वो भी प्रशासन की मदद से नही बल्कि बस्तर पुलिस की मदद से।एक तरफ विभिन्न विभागों के लिए नलकूप खनन करने वाले नेताओं के चहेते ठेकेदार 10 साल पहले खोदे गए नलकूपों को वर्तमान का बता कर सरकारी खजाने पर डाका डाल रहे हैं वहीं इस गाँव के सैकड़ों लोग जिंदगी भर के लिए एक नाले को जीने का सहारा बनाये हुए हैं।

 

सरकारी निगाह-ए-करम का इंतज़ार। 

पुलिस का यह एक हेण्डपम्प तमाम सरकारी कागज़ी योजनाओं पर भारी है। यहां के आदिवासी यह हेण्डपम्प पाकर बेहद खुश है और बस्तर पुलिस को धन्यवाद दे रहे हैँ।पिछले बीस दिन पहले तक यहां पैदल पहुंचना भी नामुमकिन जैसा था अब चार पहिया वाहनों के लिए भी पुलिस ने रास्ता साफ कर दिया है।। चांदामेटा के नीचे स्थित कॉलेंग गाँव तक बड़े अधिकारियों के पहुंचने,आदिवासियों के साथ बैठ कर भोजन करने और उनके साथ नाचने गाने की कई तस्वीरें आये दिन सरकारी खबरों में दिखाई पड़ती रहती हैं।यहां से चंद किलोमीटर की दूरी पर बसे इन उपेक्षित वनवासियों का हाल जानने की कोशिश किसी ने नहीं की।किसी राजनीतिक दल का कोई नेता वोट मांगने के नाम से भी यहां कभी नही आया।सरपंच बुधरु छिंदगुर से यहां आने की जहमत नही उठाते।पंचायत सचिव की क्या कहें उनकी तो यहां के लोगों ने शक्ल तक नही देखी है।
चांदामेटा तक सड़क अब एक नई उम्मीद की तरह है।उम्मीद है यहां के अत्यंत दयनीय और अभावग्रस्त आदिवासियों के साथ भी अब हमारे जिले के बड़े अधिकारी फोटोसेशन के नाम से ही सही मिलने ज़रूर आएंगे।बस एक निगाहे-करम की देर है ,हो सकता है इसी बहाने इनकी बदहाल ज़िन्दगी संवर जाए।किसी काले पानी की सज़ा काट रही ठेठ बस्तरिया आदिवासियों की सदियों पुरानी यह पीढ़ी आधुनिक आमचो बस्तर वाली मुख्य धारा से जुड़ सके ।आमचो बस्तर लिखी तख्तियां लिए बस्तर को अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने दिन रात अपना पसीना बहाने वाले हमारे जिले के रहनुमाओं के लिए यह सोचने का रास्ता इस सड़क के बहाने ही सही लेकिन साफ हो चुका है। आधी आबादी जेलों में बंद

ग्रामीणों ने बताया कि पिछले महीने तक यह गांव नक्सलियों की पनाहगाह बना हुआ था।इस गांव की पश्चिमी सरहद झीरम घाटी से जुड़ी हुई है।जब नक्सलियों द्वारा झीरम कांड और टाहकवाडा कांड जैसी बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया उसके बाद इसी गाँव से सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं।करीब 45 लोगों को माओवादियों को मदद पहुंचाने के नाम पर गिरफ्तार किया गया।100 से ज़्यादा आदिवासी युवकों ने पुलिस के डर से गांव छोड़ दिया।एक तरफ पुलिस तो दूसरी तरफ नक्सली।इस दबाव ने आधी आबादी को विस्थापित कर दिया। चांदामेटा के आदिवासी युवक आयता वेटी ने बताया कि इस गांव के हर परिवार का एक सदस्य जेल में बंद है।इन परिवारों का पूरा का पूरा जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है।स्वयं आयता डेढ़ साल तक जेल में बंद था।जेल से छूटने के बाद भी कई बार उसे गिरफ्तार किया गया।कभी दरभा,कभी पूसपाल तो कभी कुमाकोलेंग के कैम्पों में उसे पूछताछ के लिए कई दिनों तक रखा गया फिर छोड़ दिया गया।उस पर कई बार नक्सलियों के साथ मिलकर आईईडी प्लांट करने के आरोप लगाए गए।फिलहाल वह अपनी पत्नी मुके और तीन बच्चों के साथ अभाव में ही सही शांति का जीवन व्यतीत कर रहा है। चांदामेटा में सीआरपीएफ के कैम्प की स्थापना के सवाल पर कहा कि इसके बाद जीवन और कठिन हो जाएगा।घर से निकलना दूभर हो जाएगा।दोनों तरफ के लोग हमे संदेह भारी नज़र से देखेंगे।एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
एक अन्य ग्रामीण चिंगा ने बताया कि वो यहाँ के प्राइमरी स्कूल में चपरासी का काम करते थे।यहां करीब 70 बच्चे पढ़ा करते थे। गुरुजी कभी कभार स्कूल आया करते थे।सरकारी देखरेख के अभाव में 12 साल से स्कूल बंद पड़ा है।भवन भी ढह चुका है।इनके दो बेटे देवाराम और भीमा झीरम कांड में संलिप्तता के नाम पर पिछले 8 सालों से जेल में बंद हैं।उन्हें छुड़ाने की जद्दोजहद में उनकी जमापूंजी के एक लाख अस्सी हजार रुपये खर्च हो चुके हैं।1200 रुपये महीने के रूप में मिलने वाली तनख्वाह भी लंबे समय से उन्हें नही मिली है।भगवान भरोसे जीवन गुज़र रहा है।

बहुत बड़ी उपलब्धि:नक्सलियों की मांद तक पहुंची बस्तर पुलिस 

इस सड़क के बनते ही माओवादियों का अभेद्य किला अब ढह चुका है।जहां पिछले महीने तक नक्सलियों के टेंट लगे होते थे वहां अब बस्तर पुलिस की विजय पताका लहरा रही है।चांदामेटा के काफी ऊपर तुलसी नामक गाँव है।जैसे चांदामेटा के लोग रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए पहाड़ से उतर कर कोलेंग के साप्ताहिक बाज़ार आया करते हैं वैसे ही तुलसी गांव के लोग तुलसी डोंगरी के उस पर ओडिशा के मलकानगिरी जिले के मऊपदर बाजार जाया करते हैं।तुलसी गांव के लोगों को सभी सरकारी मदद ओडिशा सरकार से मिलती है।जैसे इस तरफ छत्तीसगढ़ पुलिस की पहल पर सड़क बनी है उसी तरह ओडिशा की तरफ से सीमा सुरक्षा बल सड़क का निर्माण कर रहा है।दोनों तरफ से लाल आतंकियों को धकियाते हुए अब तुलसी डोंगरी से दो किलोमीटर दूर तक ओडिशा में भी सड़क का निर्माण हो चुका है।वह दिन दूर नही जब तुलसी डोंगरी के रास्ते मलकानगिरी तक चौपहिया वाहनों की भी आवाजाही शुरू हो सकेगी।इधर नक्सलियों की पनाहगाह मानी जाने वाली तुलसी डोंगरी तक बस्तर पुलिस की पहुंच का हो जाना कोई साधारण बात नहीं है।इस रास्ते के चलते एक बहुत बड़ा और नक्सलियों के लिए बेहद सुरक्षित माना जाने वाला सैकड़ों वर्ग किलोमीटर का इलाका अब लाल आतंक से मुक्त होने जा रहा है।निःसंदेह इसका पूरा श्रेय बस्तर आईजी सुंदर राज पी.पुलिस अधीक्षक जीतेन्द्र सिंह मीणा , उनके नौजवान और जांबाज़ पुलिस अधिकारी शिशुपाल सिन्हा , भुवनेश्वर साहू और उनकी टीम को जाता है।

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