यात्रियों और कर्मचारियों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए रेलवे ने उठाया बड़ा कदम

बिलासपुर। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के नागपुर-झारसुगुड़ा रेलखंड पर स्वदेशी कवच सुरक्षा तकनीक लागू करने की तैयारी है। 614 रूट किलोमीटर लंबी इस परियोजना के लिए 292 करोड़ रुपये खर्च…

यात्रियों और कर्मचारियों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए रेलवे ने उठाया बड़ा कदम

बिलासपुर। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के नागपुर-झारसुगुड़ा रेलखंड पर स्वदेशी कवच सुरक्षा तकनीक लागू करने की तैयारी है। 614 रूट किलोमीटर लंबी इस परियोजना के लिए 292 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस परियोजना से यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों की सुरक्षा को एक नई ऊंचाई मिलेगी।

यह पूरी तरह से एक स्वदेशी तकनीक होगी। भारतीय रेलवे संरक्षा और कुशलता को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इसी दिशा में एक और कदम बढ़ाया है। इसके लिए निविदा आमंत्रित किया गया है, जिसे 25 नवंबर को खोला जाएगा।

क्या है कवच तकनीक
कवच भारतीय रेलवे की स्वदेशी और उन्नत आटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन प्रणाली है। यह तकनीक ट्रेनों के संचालन को हर पल मानिटर करती है और सिग्नल व स्पीड से संबंधित दुर्घटनाओं को रोकने में सक्षम है। इसके जरिए दो ट्रेनों के बीच आमने-सामने की टक्कर को रोका जा सकता है।

इस प्रणाली में रेडियो फ्रिक्वेंसी टैग और वायरलेस कम्युनिकेशन का उपयोग कर ट्रेन के इंजन, ट्रैक, सिग्नल और स्टेशन को आपस में इंटरलाक किया जाता है। लोको यूनिट में स्थित डिवाइस ट्रेन को सही गति और सुरक्षित संचालन के निर्देश देती है। इस आटोमैटिक तकनीक के जरिए अब दो ट्रेनों के बीच आमने-सामने की टक्कर से बचाव सुनिश्चित होगी।

सिकंदराबाद में सफल परीक्षण
रेलवे के मुताबिक मार्च 2022 में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दक्षिण मध्य रेलवे के सिकंदराबाद मंडल में कवच तकनीक का सफल परीक्षण किया। इससे यह साबित हुआ कि यह तकनीक संरक्षा को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह सक्षम है।

कवच तकनीक का उद्देश्य भारतीय रेलवे को सुरक्षा और दक्षता के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक ले जाना है। नागपुर-झारसुगुड़ा खंड पर इसका लागू होना न केवल संरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय रेलवे की आधुनिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।

यह होंगे प्रमुख लाभ
ट्रेन संचालन की पूर्ण सुरक्षा।
सिग्नल व स्पीड से संबंधित दुर्घटनाओं पर रोक।
यात्रियों और कर्मचारियों की संरक्षा में सुधार।
स्वदेशी तकनीक के जरिए रेलवे को आत्मनिर्भर बनाना।