मंत्री के तीखे तेवर के बाद पीडब्ल्यूडी के अफसरों ने किया था दावा-15 दिन में चमक जाएंगी मप्र की सडक़ें
भोपाल । मप्र में सडक़ों की जर्जर हालात आए दिन हादसों का कारण बनती जा रही है। इसे लेकर 8 अगस्त को प्रदेश के पीडब्ल्यूडी अधिकारियों का दावा है कि…
भोपाल । मप्र में सडक़ों की जर्जर हालात आए दिन हादसों का कारण बनती जा रही है। इसे लेकर 8 अगस्त को प्रदेश के पीडब्ल्यूडी अधिकारियों का दावा है कि वे प्रदेश की सडक़ों की स्थिति को 15 दिनों में चकाचक कर देंगे। लेकिन आज इस दावे के 52 दिन बाद स्थिति बद से बदतर हो गई है। लोक निर्माण विभाग का गड्डा मुक्त अभियान भी पहली बार फेल हो गया है। पूरे प्रदेश की सडक़ों में बारिश के बाद गड्ढे हो गए हैं, लेकिन इसमें भी भोपाल संभाग में सडक़ों की स्थिति सबसे दयनीय है। यहां पर भोपाल, सीहोर, राजगढ़, विदिशा और रायसेन में बारिश के बाद टूटी सडक़ें मेंटेनेंस के अभाव में जर्जर हो गईं। हालांकि, राजधानी में सवाल उठने पर अधिकारियों ने कुछ जगह पेचवर्क का काम कराया है।
गौरतलब है कि खराब सडक़ों की शिकायतें बढऩे के बाद लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने 8 अगस्त को अधिकारियों की बैठक बुलाकर प्रदेश में बारिश से खराब हुई सडक़ों की मरम्मत को लेकर नाराजगी जताई थी। उन्होंने अफसरों को एक हफ्ते के अंदर सभी सडक़ों की मरम्मत करके रिपोर्ट देने को कहा था। साथ ही निर्देश दिया है कि मरम्मत के बाद इंजीनियर लिखित में पुष्टि करें कि उनके इलाके में एक भी गड्ढा नहीं बचा है। लेकिन लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की उदासीनता का आलम यह है कि आदेश का क्रियान्वयन करना ही भूल गए। इसका नतीजा यह हुआ कि प्रदेश की अधिकतर सडक़ें जर्जर और गड्ढों में तब्दील हैं। जिस पर पेचवर्क नहीं होने से दुर्घटनाएं होने के साथ ही जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
जानकारी के अनुसार, मप्र में अब तक तकरीबन 8920 हजार किमी सडक़ इस बार बारिश में खराब हो गईं। सडक़ निर्माण से जुड़े सूत्रों की मानें तो 70 फीसदी सडक़ें गारंटी पीरियड में ही खराब हो गई हैं। जानकारों का मानना है कि सडक़ निर्माण के मापदंडों को दरकिनार कर प्रदेश में दनादन सडक़ें बनाई जा रही हैं। हालांकि लोक निर्माण विभाग, मप्र सडक़ विकास निगम और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सडक़ों की गुणवत्ता को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश में इस बार हुई रिकॉर्डतोड़ बारिश ने सडक़ों की दशा बिगाड़ दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में अब तक 9 हजार करोड़ की लागत की सडक़ें जर्जर हो गई हैं।
प्रदेश के दूरदराज क्षेत्रों की सडक़ों की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजधानी भोपाल में ही 80 फीसदी से अधिक सडक़ें गड्ढों में गायब हो गई हैं। सडक़ों की गुणवत्ता की हालत यह है कि पीडब्ल्यूडी द्वारा बनाई गई प्रमुख सडक़ों में से 70 फीसदी गारंटी पीरियड में ही खराब हो गई है। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भोपाल की सडक़ों की स्थिति देखकर गत दिनों अधिकारियों पर बहुत नाराज हुए। विजयवर्गीय ने कहा कि भोपाल नगर निगम के पास कुल 2020 किलोमीटर लंबाई की सडक़ों का नेटवर्क है, जिनमें से अधिकांश सडक़ों में बारिश के कारण गड्ढे हो गए हैं। भोपाल नगर निगम के अफसरों ने बैठक में जानकारी दी कि शहर में कुल 2020 किमी लंबी सडक़ें हैं। अभी की स्थिति में कुल 225 सडक़ें क्षतिग्रस्त हैं। निगम ने सडक़ों को सुधारने के लिए 50 करोड़ का प्रस्ताव विभाग को सौंपा।
प्रदेश में पीडब्ल्यूडी की करीब 81 हजार किमी सडक़ें है। इसमें अधिकतर सडक़ों में जगह-जगह गड्ढे हैं। जानकारों का कहना है कि हर साल यही स्थिति बनती है। इसमें गड्ढों में से गाड़ी चलाना और जर्जर सडक़ों की उड़ती धूल मुसीबत बढ़ाती है। इससे भाजपा का चुनावी दांव उलटा पड़ सकता है। प्रदेश में सडक़ें लोक निर्माण विभाग, मप्र सडक़ विकास निगम और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की हैं। ऐसा पहली बार है जब मानसूनी बारिश में प्रदेश में इतनी ज्यादा सडक़ें खराब हुईं हों। जानकारों का कहना है कि सबसे अधिक पीडब्ल्यूडी की सडक़ें खराब हुई हैं। प्रदेश में करीब 81 हजार किलोमीटर का बड़ा हिस्सा लोक निर्माण विभाग के पास है, इसमें 9 हजार 315 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, 12 हजार 568 किलोमीटर स्टेट हाईवे, 25 हजार 420 किलोमीटर मुख्य जिला मार्ग और 33 हजार 697 किलोमीटर ग्रामीण सडक़ें शामिल हैं। जिसमें से सबसे ज्यादा 6500 किलोमीटर से ज्यादा सडक़ें पूरी तरह उधड़ चुकी हैं। बाकी खराब सडक़ों में 2500 किमी का हिस्सा आरडीसी और एनएचएआई का है। अब तक की जानकारी के मुताबिक 1600 किलोमीटर की सडक़ों में इस कदर गड्ढे हो गए हैं कि उन पर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। सडक़ से डामर गायब होने लगा है और दोपहिया वाहन चालक हादसों का शिकार हो रहे हैं।