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बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए खोल दिया गया बस्तर के जल जंगल और ज़मीन का खज़ाना

ख़ज़ाने के वास्तविक हक़दारों को खबर ही नहीं

बस्तर का लोहा अनकापल्ली ले जाने स्लरी पाईप लाईन को सरकार ने दे दी मंजूरी
आर्सेलर मित्तल की परियोजना में  बर्बाद होगा हर साल करीब 7अरब लीटर शबरी का पानी
लाखों टन लाल ज़हर से पट जायेंगे खेत, जहरीले हो जाएंगे नदी नाले
रेल्वे को होगा हर साल साढ़े सत्रह अरब का नुकसान
आंध्र के 50 हज़ार और बस्तर के सिर्फ 29 लोगों को मिलेगा रोजगार
प्रभावित सुकमा जिले के लोगों को नहीं दी गई जन सुनवाई की जानकारी

जगदलपुर/किरन्दूल(हाईवे चैनल)इस्पात मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश के अनकापल्ली में आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील के देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट के लिए किरंदुल से अनकापल्ली तक स्लरी पाइपलाइन बिछाने की मंज़ूरी दे दी है । यह कदम, परियोजना को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ) से पर्यावरणीय मंज़ूरी मिलने के  बाद उठाया गया है।वहीं दूसरी तरफ के.के. लाईन के होने के बावजूद भी यह ढुलाई रेलवे नहीं कर सकेगा और भारतीय रेल को इस परियोजना से हर साल  सत्रह सौ पचास करोड़ अर्थात  साढ़े सत्रह अरब रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ेगा। किरंदुल से कोत्तवलसा तक रेल मार्ग के दोहरी करण में रेलवे के 7200 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं जिसकी भरपाई सिर्फ पांच सालों के आर्सेलर मित्तल के लौह अयास्क की ढुलाई से ही की जा सकती है लेकिन ऐसा नहीं होगा क्यों कि भारत सरकार के लिए उद्योगपतियों का फायदा ज्यादा महत्वपूर्ण है।मुनाफे की लालच में बस्तर की एक मात्र बारहमासी शबरी नदी के अस्तित्व को भी दांव पर लगा दिया गया है।

आर्सेलर मित्तल के किरंदुल स्थित बेनिफिसिऐशन प्लांट से निकल रहा घातक लौह अयस्क अपशिष्ट

आर्सेलर मित्तल कंपनी के अधिकारी इसी पाइपलाइन के विस्तार से पहले अपने किरंदुल स्थित बेनिफिसिऐसन प्लांट के क्षमता विस्तारीकरण के लिए आगामी मंगलवार को जन सुनवाई का आयोजन कर रहे हैँ।वर्त्तमान क्षमता 80 लाख टन को बढ़ा कर एक करोड़ बीस लाख टन किया जा रहा है।बस्तर में इस परियोजना का व्यापक विरोध हो रहा है जिसकी वजह से कंपनी के अधिकारी लोगों को गुमराह कर रहे हैँ और यह बताते घूम रहे हैँ कि इस विस्तारीकारण का अनकापाल्ली प्लांट से कोई लेना देना नहीं है।बीते बीस सालों से इस परियोजना के लिए  यह कंपनी शबरी नदी से रोज़ाना 12000 किलो लीटर (एक करोड़ बीस लाख लीटर ) पानी ले रही है जो अब विस्तारीकारण के बाद यह मात्रा 18000 किलो लीटर अर्थात एक करोड़ अस्सी लाख लीटर प्रतिदिन हो जाएगी ।पानी कि यह मात्रा जगदलपुर जैसे छोटे शहरों में रोज़ हो रही पानी की खपत के बराबर है।साल भर के हिसाब से यह मात्रा 6 अरब 57 करोड़ लीटर होती है जो दिल्ली शहर के दो दिनों के लिए आवश्यक पानी की मात्रा के बराबर है। वहीं जलाशयों से तुलना करें तो यह 6.57 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी भारत के कई मध्यम आकार के बांधों की क्षमता के बराबर है जिनसे साल भर कई गाँवों में खेतोँ की सिंचाई हो रही है।हैरानी कि बात यह है कि बस्तर और सुकमा जिले के सौ से अधिक गाँव शबरी नदी पर आश्रित हैँ लेकिन उन्हें इस जनसुनवाई की खबर ही नहीं है।

प्रतीकात्मक चित्र

हज़ारों टन लाल ज़हर से खेतोँ के बंजर हो जाने का खतरा
लौह अयस्क चूर्ण के स्लरी पाईप लाइन से परिवहन में जहाँ कंपनी को सड़क या रेल के मुकाबले एक चौथाई से भी कम खर्च करना होता है वहीं प्रोसेसिंग के बाद बचा हुआ अपशिष्ट जो दंतेवाड़ा में इन दिनों लाल जहर के नाम से जाना जा रहा है उसके बेहद घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैँ। कंपनी के हिसाब से यह टेलिंग्स 6 प्रतिशत ही निकल रहा है जबकि जानकारों का कहना है कि कितनी भी आधुनिक और महंगी तकनीक हो यह मात्रा 20 प्रतिशत से कम नहीं हो सकती। उस हिसाब से साल भर में निकलने वाले लाल ज़हर की मात्रा 24 लाख टन होती है जिसे कंपनी 6लाख 65 हज़ार टन बता रही है। यह लाल ज़हर दंतेवाड़ा और सुकमा में निजी और शासकीय भूमि में भूमि सुधार के नाम पर फेंका जा रहा है। पर्यावरण विभाग और जिला प्रशासन के निर्देशों को दरकिनार कर अपशिष्ट के निपटान से सैकड़ों एकड़ भूमि के साथ नदी नाले तक इस लाल ज़हर से प्रदूषित हो रहे हैँ।

आंध्रप्रदेश के अनकपल्ली के जिस स्टील प्लांट में  बस्तर के पानी के सहारे भेजा जाने वाला बस्तर का लोहा गलाया जायेगा उस प्लांट में आंध्र के 50 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलने वाला है, और यहां किरंदुल में यह कंपनी सिर्फ 27 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार देने का शर्मनाक वादा कर रही है।बीते बीस सालों में पानी से परिवहन के इस फायदेमंद सौदे में अरबों का मुनाफा कमाने वाली यह कंपनी  बीते तीन सालों में सिर्फ 10.81 करोड़ रुपये सीएसआर के नाम पर खर्च करने का दावा कर रही है जबकि इससे हज़ारों गुना राशि भी अगर बाँट दी जाये तो बस्तर  को हो रहे पर्यावणीय नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती।

शबरी नदी के विलुप्त प्रजाति के झीगों को बचाने रेत उत्तखनन को रोकने की अनुशंसा

राज्य के मछली पालन विभाग ने शबरी नदी में मौजूद सुआन मछली , ईल मछली, बामी मछली, मोगरी मछली के साथ साथ संकटापन श्रेणी के मेक्राब्रिकियम रोजनवर्गी झीँगा की उपलब्धता का ज़िक्र करते हुए इस नदी में रेत के उतखनन को रोकने की अनुशंसा पर्यावरण विभाग के राज्य स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति से की है।ऐसे में इतनी बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी पर प्रदेश सरकार की उदासीनाता से विरोध का उभरना लाज़िमी है।

जन सुनवाई का करेंगे विरोध -विधायक विक्रम मंडावी

विक्रम मंडावी विधायक बीजापुर
बीजापुर के विधायक विक्रम मंडावी ने कहा कि यह परियोजना आंध्रप्रदेश के लिए जितनी लाभकारी है उतनी ही बस्तर के लिए विनाशकारी है। जल जंगल और ज़मीन तीनों के लिए यह परियोजना अभिशाप साबित होगी इसका व्यापक विरोध किया जायेगा।

सुकमा और बस्तर जिले के लोगों को नहीं दी गई सूचना

दीपक सिंह चौहान स्थानीय निवासी सुकमा

सुकमा के स्थानीय निवासी दीपक चौहान ने कहा कि इस कंपनी का पम्प हॉउस सुकमा में स्थापित है लेकिन आज तक इस इलाके की इस कंपनी द्वारा उपेक्षा की गई है। सुकमा इलाके में क्षेत्रीय विकास के नाम पर कागज़ों में काम किया जा रहा है और करोड़ों रुपये की हेराफेरी की जा रही है। उन्होंने कहा की 30 तारीख़ को होने वाली जन सुनवाई के बारे में सुकमा जिले के लोगों को अँधेरे में रखा गया है। इस विस्तारीकरण का पुरजोर विरोध किया जायेगा।

शबरी को बचाने करेंगे बड़ा आंदोलन -शुक्ल

उमाशंकर शुक्ल वरिष्ठ कॉंग्रेस नेता बस्तर

वरिष्ठ कांग्रेस नेता उमा शंकर शुक्ल ने कहा कि जन सुनवाई में इस परियोजना का कड़ा विरोध किया जायेगा। अब शबरी नदी से एक लीटर पानी भी आर्सेलर मित्तल को नहीं लेने दिया जायेगा। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस विस्तारीकारण के साथ वर्त्तमान में चल रहे पम्प हॉउस को तत्काल बंद किया जाये। अगर यह मांग नहीं मानी गयी तो एक बड़ा जन आंदोलन छेड़ा जायेगा।

परिवहन संघो द्वारा भी किया जायेगा विरोध

प्रदीप पाठक अध्यक्ष बस्तर परिवहन संघ

बस्तर परिवहन संघ के अध्यक्ष प्रदीप पाठक और बैलाडीला ट्रक ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज सिंह ने कहा कि परिवहन संघ को इस पाईप लाईन से बड़ा नुकसान हो रहा है। कंपनी से एक लाख टन प्रतिमाह लौह अयस्क के सड़क मार्ग से परिवहन की मांग की जाएगी। अगर ऐसा होगा तो स्थानीय बेरोजगारों को लाभ मिल सकेगा।यदि ऐसा नहीं हुआ तो कंपनी के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जायेगा।

तीन राज्यों से गुज़रेगी स्लरी पाईप लाईन

इस्पात मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश के अनकापल्ले में  आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील के देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट के लिए किरंदुल से अनकापाल्ली तक स्लरी पाइपलाइन बिछाने की मंज़ूरी दे दी है।यह मंज़ूरी पेट्रोलियम एवं खनिज पाइपलाइन (भूमि उपयोग अधिकार अधिग्रहण) अधिनियम, 1962 के तहत दी गई है । यह कानून छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा सुकमा से ओडिशा के मलकानगिरी होते हुए अनकापल्ले संयंत्र तक लौह अयस्क घोल पहुँचाने के लिए पाइपलाइन बिछाने का अधिकार प्रदान करता है । मंत्रालय ने अनुमतियों और भूमि संबंधी प्रक्रियाओं के प्रबंधन हेतु पाइपलाइन मार्ग के प्रत्येक क्षेत्र के लिए विशिष्ट प्राधिकरण नियुक्त किए हैं।एक राजपत्र अधिसूचना द्वारा दंतेवाड़ा और सुकमा ( छत्तीसगढ़ ), मलकानगिरी ( ओडिशा ), और विशाखापत्तनम, अनकापल्ली और अल्लूरी सीताराम राजू ( आंध्र प्रदेश ) जिलों के राजस्व अधिकारियों को परियोजना की देखरेख के लिए अधिकृत किया गया है। इसके बाद, अगले चरणों में भूमि अधिग्रहण अधिसूचना, भूमि सर्वेक्षण, जन परामर्श और औपचारिक सरकारी सिफारिशें शामिल हैं। ये प्रशासनिक प्रक्रियाएँ सुचारू कार्यान्वयन और पर्यावरणीय मानदंडों का पालन सुनिश्चित करेंगी।इधर किरंदुल में जन सुनवाई से पहले ही कंपनी ने क्षमता विस्तारीकरण का काम लगभग पूरा कर लिया है।

 

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