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बस्तर को नीति आयोग से मिले 97 लाख रुपये हुए गायब

आकांक्षी जिलों के नाम पर खुद की आकांक्षाएं पूरी करने में लगे बस्तर के अधिकारी

 

कांग्रेस के कार्यकाल में नीति आयोग के दिशा निर्देशों की उड़ी धज्जियां

उधर दिल्ली में नीति आयोग की बैठकों में बस्तर मॉडल की हो रही तारीफ

स्वामी आत्मानंद अंग्रेज़ी स्कूलों के उन्नयन के नाम पर शिक्षा विभाग का घोटाला

डीएमएफ से हो चुके कार्य को नीति आयोग से भी करा लिया स्वीकृत

शिक्षा विभाग का दावा ग्रामीण यांत्रिकी विभाग को दी राशि

ग्रामीण यांत्रिकी विभाग ने किया साफ इनकार

देवशरण तिवारी

जगदलपुर (हाईवे चैनल)। बीते दिनों दिल्ली में हुई नीति आयोग की बैठक में आकांक्षी जिलों में हो रहे कार्यों की चर्चा के दौरान खास तौर पर विकास के बस्तर मॉडल की चर्चा हुई। सभी राज्य बस्तर मॉडल का अनुसरण करने लालायित हैं, लेकिन नीति आयोग के बस्तर में हुए कार्यों की तस्वीर सरकारी दावों के बिल्कुल विपरीत है। बीते कांग्रेस शासन में बस्तर में पदस्थ रहे बड़े अधिकारियों ने नीति आयोग से स्वीकृत बड़ी धनराशि में जमकर भ्रष्टाचार किया और तस्वीर ऐसी दिखाई कि लोग विकास के इस तथाकथित बस्तर मॉडल के कायल हो गए। 2020 से लेकर 2023 तक की अवधि में नीति आयोग से स्वीकृत कार्यों के लिए मिली राशि का लगभग पूरा का पूरा हिस्सा अफसरों, ठेकेदारों और सप्लायरों की तिजोरियों में पहुंच चुका है। जिसकी जांच पड़ताल करना तो दूर वर्तमान सरकार के जिम्मेदार लोग इस बड़ी भ्रष्टाचार की कहानी को भी सफलता की कहानी के रूप में प्रचारित करते नज़र आ रहे है। नीति आयोग की राशि से उगाई जाने वाली बस्तर कॉफी का हश्र किसी से छुपा नहीं है। इसी तरह ऑयल पाम,आंगनबाड़ियों का उन्नयन और स्वास्थ्य विभाग के लिए खरीदी गई सामग्री में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। ऐसा ही एक मामला जिले के शिक्षा विभाग का उजागर हुआ है जिसमे सीधे-सीधे 97 लाख 89 हज़ार रुपये सरकारी खजाने से गायब हो चुके हैं।

मामला कॉंग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल का है जिसमे बस्तर जिले के तीन स्वामी आत्मानंद अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों का उन्नयन किया गया था। किलेपाल,दरभा और तोकापाल के विद्यालयों के उन्नयन के लिए 2020 में ही जिला खनिज न्यास से करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके थे उसके बाद भी नीति आयोग को गुमराह करते हुए इस कार्य के लिए 1 करोड़ 53 लाख 4 हज़ार रुपये स्वीकृत करवाये गए।नीति आयोग द्वारा जारी स्वीकृति आदेश क्रमांक 146 दिनांक 30.12.2021 के माध्यम से यह राशि बस्तर जिले के स्वामी आत्मानंद अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों के लिए जारी की गई थी ।

आत्मानंद स्कूल के उन्नयन के लिए नीति आयोग द्वारा स्वीकृत आदेश

सीधे सीधे इस राशि को हड़पने की तैयारी पहले से ही कर ली गई थी।एक ही कार्य के लिए दो योजनाओं से राशि स्वीकृत करवाने के जुर्म से बचने नीति आयोग को कागजों में उलझाया गया और यह राशि बड़ी चालाकी से पहले जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के खाते में मंगवाई गई। इस राशि को मुख्य चिकित्सा एवं स्वस्थ अधिकारी द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी के खाता क्रमांक 0707104000151535 में दिनांक 04.02.2022 को पत्र क्रमांक 942और चेक क्रमांक 074760 के माध्यम से जमा करवाया गया।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बांट रहे नीति आयोग की राशि।

उसके बाद तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी ने तत्कालीन सरकार के इशारों पर इस राशि का कागजों पर खर्च प्रदर्शित करते हुए पूरी रकम को ही ठिकाने लगा दिया। इस खर्च में मुम्बई की एक संस्था को बिना किसी टेंडर के 55 लाख 15 हजार रुपये शिक्षकों और विद्यार्थियों को ट्रेनिंग के नाम पर भुगतान करना बताया गया है।

इन विद्यालयों में पदस्थ शिक्षकों ने बताया कि मुम्बई की इस संस्था द्वारा किलेपाल और दरभा में कुछ कम्प्यूटर लगाए गए हैं।कुछ दिन शिक्षकों और विद्यार्थियों को ट्रेनिंग भी दी गई । कम्यूटर में डाला गया सॉफ्टवेयर प्रोग्राम सिर्फ एक साल के लिए ही था जो इस अवधि के पूर्ण होने के बाद से बंद पड़ा है। मुम्बई की स्क्वायर पांडा नाम की इस संस्था को सिर्फ कुछ दिनों की ट्रेनिंग के नाम पर 55 लाख 15 हज़ार रुपये का भुगतान किया गया है।

इस संस्था द्वारा दिये गए बिल में कम्प्यूटर और फर्नीचर आदि का कोई उल्लेख नहीं है। ये कम्प्यूटर किससे और कब खरीदे गए इसका हिसाब जिला शिक्षा अधिकारी के पास भी नहीं है। इस तरह यह 55 लाख 15 हज़ार तो डूब गए अब बचे 97 लाख 89 हज़ार रुपये। बस्तर के जिला शिक्षा अधिकारी ने लिखित रूप से यह स्वीकार किया है कि नीति आयोग से प्राप्त यह राशि बस्तर के ग्रामीण यांत्रिकी विभाग को दी गई है।

जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा ग्रामीण यांत्रिकी विभाग से करवाए गए कार्य का उपयोगिता प्रमाण पत्र

इस राशि से स्वामी आत्मानंद अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल दरभा और किलेपाल में टाईल्स ,पुटिंग, रंगाई पुताई ,प्लम्बिंग,शौचालय मरम्मत शाला मरम्मत,दरवाजे खिड़कियां, वाटर सप्लाई और आंतरिक विद्युतीकरण का कार्य करवाया गया हैं। जबकि शिक्षकों का कहना है कि ये सारे कार्य आत्मानंद स्कूलों के आरंभ किये जाने के समय ही जिला खनिज न्यास की राशि से लोक निर्माण विभाग द्वारा करवाये जा चुके थे। इस पूरे मामले का पर्दाफाश तब हुआ जब ग्रामीण यांत्रिकी विभाग से इस राशि के खर्च के बारे में पूछा गया। यहां के कार्यपालन अभियंता ने लिखित रूप से यह स्वीकार किया है कि 2020 से लेकर आज दिनांक तक कोई भी राशि इन स्कूलों के उन्नयन के लिए उनके कार्यालय को प्रदान नहीं की गई है।

ग्रामीण यांत्रिकी सेवा द्वारा बीते पांच सालों में शिक्षा विभाग का कोई भी कार्य नहीं किया गया।

इससे साफ जाहिर होता है कि नीति आयोग की यह राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। मामला इस तरह से भी बेहद गंभीर हो जाता है कि जिला शिक्षा अधिकारी ने दिनांक 16.02.2022 को आईडीबीआई बैंक के चेक क्रमांक-242020 के माध्यम से निर्माण कार्य की यह राशि कलेक्टर बस्तर को लौटा देने संबंधी पत्र हमे उपलब्ध करवाया है।

जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा नीति आयोग की राशि डीएमएफ में जमा करने संबंधी पत्र।

साथ ही उनका दिनांक 09.02.2023 को जारी उपयोगिता प्रमाणपत्र भी हमारे पास है जिसमे नीति आयोग से मिली राशि से आरईएस द्वारा कार्य पूर्ण कर दिए जाने की बात लिखी है। अब सवाल यह उठता है कि जब यह राशि कलेक्टर को लौटा दी गई थी तो उसके ठीक एक साल बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने नीति आयोग को यह झूठा उपयोगिता प्रमाणपत्र क्यों प्रेषित किया जिसमे आरईएस द्वारा यह कार्य पूर्ण कर लिए जाने की बात लिखी गई है जबकि बीते पांच सालों में आरईएस ने इस तरह का कोई काम किया ही नहीं है।

जिला शिक्षा अधिकारी ने नहीं दिया जवाब

एक तरफ जिला शिक्षा अधिकारी  आरईएस के माध्यम से यह कार्य पूर्ण कर लिए जाने की बात कह रहे हैं दूसरी तरफ कार्य एजेंसी आरईएस ऐसे किसी काम को करने से इनकार कर रहा है। साथ ही जिला शिक्षा अधिकारी इस राशि को जिला खनिज न्यास में जमा कर दिए जाने की भी बात कह रहे हैं।इस अजीबोगरीब घटना के बाद नीति आयोग के बस्तर मॉडल की हकीकत अब सबके सामने आ चुकी है। पूरा मामला तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान के कार्यकाल का है। इस मामले में उनका पक्ष जानने की कई बार कोशिश की गई पर उन्होंने कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा।

 

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